nathi nonsense
कौन रोबोट कौन इंसान?
मज़दूर सुन कर ही एक पतला सा पसीने में नहाया हुआ, धूप में जला हुआ काला सा चेहरा सामने आता है, जो साल के ज्यादातर दिन अपने अस्तित्व के लिए लड़ता है, झगड़ता है। उनके घर में हमारे घर की तरह पूरे साल का राशन नहीं खरीदा जाता या मसाले,घी,तेल एक साथ नहीं लाया जाता, वो रोज़ मजदूरी करके रोज़ का रोज़ ये सब लाते है,ख़ैर उनका घर भी कहा होता है, मैं अपनी भौतिकता(materialism) के सहारे और सुविधाओं की आदत वाली जिंदगी के दलदल में इतना धस चुका हूं कि मैं ये मान लेता हूं कि सब के पास घर है,सब के पास सुविधाएं है और यही मान लेना हमें अलग करता है मज़दूर से, यही हमें सही अर्थ में रोबोट बनता है।

तो मतलब ज़रूरी नहीं की उनका घर हो ही ,हमारे यहां लड़की के हाथ हल्दी से पीले होते है पर मज़दूर की बेटी के हाथ बचपन से ही धूल से पीले होते है, वहीं उनकी लिए हल्दी और चंदन है। ये वो लोग है जो हमारे इन बड़े शहरों को बनाते है, संवारते है, जिंदा रखते हैं, मुहाफिज रखते है, गंदे से गंदा काम करते है, जो कचरा हम फैलाते है वो उठाते है, गटर साफ करते है, फ्लाईओवर बनाते हैं, रास्ते बनाते हैं, अस्पताल बनाते हैं, जो काम करने की हमारी औकात नहीं है, शक्ति नहीं है, मज़दूर वो सब काम करते है।

हां! नहीं है औकात हमारी क्यूं की जब किसी बड़े होटल में या बड़े मॉल में ये लोग जाते हैं ये सोच कर की ये मॉल, होटल बनाने में मैंने मदद की थी तब उनको ये कह कर निकला जाता है कि तुम्हारी औकात क्या है जबकि वो उनका हक है और जब ये सब गंदकी साफ करने की बात आती है जो साफ करना हर इंसान का फ़र्ज़ है तब हम पीछे हट जाते है कि ये हमारा काम नहीं। फिर भी वो चुप चाप ये सब काम करते है क्यूंकि भाई उनके अस्तित्व का सवाल है उन्हें रोज़ का राशन सब्ज़ी घी तेल खरीदना होता है।

सबसे बड़ी बात जो हमे बे दिल, क्रूर और रोबोट साबित करती है वो यह है कि इसे मजदूर जब हमारे साथ एक पॉश कहे जाने वाले इलाकों में झोंपड़ीमें रहते है तो हमे बहुत बुरा लगता है कि हमारी छबी(image) बिगड़ती है इन लोगों के साथ रहने में,ये हमारे लेवल के नहीं है। स्मार्ट शहरों के नाम पर, नवीनीकरण के नाम पर उनकी बस्तियां तबाह कर दी जाती है ।ज़रा सोचिए जिस दिन वो लोग काम करना बंध कर देंगे तो हमारे अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो जाएगा । तो सबको सम्मान दीजिए वो भी इंसान है और शायद वही लोग पूरी तरह से इंसान है हम तो आधे रोबोट और आधे इंसान रह गए हैं। ~ मुसाफ़िर