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  • Writer's picturenathi nonsense

तारा

“वो देखो, टूटता तारा। जल्दी से कुछ माँगो”, कहकर तुमने अपनी आंखे बंद कर ली। हम अपने घर की छत पर बैठे हुए थे। तुम्हारी आदत अब मेरी भी आदत बन चुकी थी, डिनर के बाद रोज़ छत पर बैठ कर तारों को देखने की। मैंने भी कुछ माँग लिया उस टूटते तारे को देख कर। जब तुमने अपनी आंखे खोली तो मैंने तुमसे पूछा की क्या माँगा तुमने। तुमने चिढ़ कर कहा की जो कुछ भी माँगते हैं वो बताते नही। मैंने हँसकर कहा, “ये क्या बात हुई? मैंने तो यह माँगा की तुम मुझसे कभी अलग ना हो।” तुम गुस्सा हो गई, कहा की अगर किसी को बता दें की क्या माँगा था, तो वह ख्वाईश पूरी नही होती। मैंने फिरसे हँसकर तुम्हे टाल दिया। उस रात शायद तुम सही थी। अगर मैंने तुम्हे नही बताया होता की मैंने क्या माँगा था, तो शायद, शायद आज मैं तुम्हारी चिता के सामने खड़े होकर अफसोस नही कर रहा होता। मगर एक अजीब सी बात है। उस दिन के बाद मैंने जब भी तुम्हे याद किया है, मुझे आसमान में कोई न कोई टूटता तारा दिखा है। और हर बार मैंने वही माँगा है, जो मैंने उस दिन माँगा था। तुम्हारी अस्थियां लेकर घर लौटते वक़्त भी मुझे एक टूटता तारा दिखा और मैंने बेझिझक अपनी आंखें बंद कर ली। मगर अब क्या माँगता मैं? टूटते तारे लोगों को वापस थोड़ी न ला सकते हैं। मुझे लगता है की ये मेरे साथ कई बार हो चुका है। मेरा तुम्हारी चिता के सामने खड़े होना, अफसोस करना, अस्थियां लेकर वापस घर आना, टूटता तारा देखना और उसे देख कर आंखें बंद कर लेना। और फिर, जले हुए रबर की बदबू, लंबी सी चीख, मेरा आंखें खोलना और सामने आता हुआ ट्रक देखना। आगे? मेरा नींद से जाग जाना। आज भी वही हुआ। यह सब देखकर अचानक से मेरी नींद उड़ गई। पसीने से लतपत और सांसे फूली हुई, मैं हमारे कमरे की सफेद छत को देखता रहा। रात के करीब 2:30 बज रहे थे। एक पल के लिए खुशी हुई यह सोच कर की यह तो सिर्फ एक सपना था, हमेशा की तरह। सो मैंने बिस्तर की दूसरी ओर हाथ फैलाया, तुम्हारे सिरहाने के पास। और हमेशा की तरह तुम्हारे खाली सिरहाने ने मुझे याद दिलाया की तुम तो कब की जा चुकी हो। क्या पता, शायद अब तक तो आसमान का कोई तारा भी बन चुकी होगी।

-Purvang Joshi

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